वैश्य एकता मंच, झारखण्ड प्रदेश
वैश्य एकता मंच का उदय बिना कोई पूर्व योजना के अकस्मात ही दैवीय संजोग कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। समाज के शुभेच्छु श्री दीनदयाल प्रसाद जी के अगुवाई एवं वैश्य महासम्मेलन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ विजय प्रकाश जी की उंची सोच ने समाज के राजनीतिक, समाजसेवी एवं प्रबुद्ध नागरिकों के साथ 26.12 .2003 को श्री चिमनलाल भालोतिया जी (अभी दिवंगत) की अध्यक्षता में एक बैठक संपन्न हुई इसमें अनेकों तरह की बातें सामने आई जिसका आपसी तालमेल के द्वारा समाधान के साथ बैठक में सर्वसम्मति से एक चुनौतीपूर्ण बड़ी जिम्मेदारी दीनदयाल प्रसाद जी को संयोजक के रूप में सौंपी गई । समाज द्वारा पूरे भरोसे के साथ न चाहकर भी समाज हित में दायित्व लिये एवं सहयोग के रूप में श्री मोहनलाल अग्रवाल (अभी दिवंगत) एवं मुरलीधर प्रसाद वर्णवाल के साथ श्री चिमनलाल भालोटिया जी (अभी दिवंगत) मार्गदर्शक मार्गदर्शक बने। सप्ताह गुजर जाने के पश्चात 2 जनवरी 2004 को टाटानगर गौशाला के सभागार में बड़ी बैठक बुलाई गई जिसमें संयोजक मंडल का गठन किया गया जिसमें .......
संयोजक --श्री दीनदयाल प्रसाद, सह-संयोजक --श्री दीपक भालोटिया, कोषाध्यक्ष --श्री मुरलीधर प्रसाद बरनवाल, संगठन प्रभारी प्रमुख --श्री मोहनलाल अग्रवाल, संरक्षक ---श्री चिमनलाल भालोटिया, श्री ओंकारनाथ जायसवाल, श्री मुरलीधर केडिया, श्री गोपाल प्रसाद, श्री जगदेव प्रसाद बरनवाल, श्री शंकर पोद्दार, श्री महावीर मोदी, श्री रूपलाल शाह एवं सदस्य --श्री बन्ना गुप्ता, श्री रामवृक्ष गुप्ता, श्री राम बल्लभ साहू, श्री विमल जालान, श्री बैजनाथ प्रसाद, श्री अरुण कुमार, श्री सुभाष मुनका, श्री घनश्याम पोद्दार, श्री बाबूलाल बोहरा, श्री केदारमल पलसानिया, श्री चक्रधर साह, श्री शालदेव साह, प्रेस प्रभारी के रूप में श्रीकांत देव शामिल किए गए। काफी मंथन के बाद संगठन का नामकरण वैश्य एकता मंच के रूप में उभर कर सामने आया। लोग काफी उत्साहित हुए और कारवां आगे बढ़ चला। खुशी के माहौल में वैश्य के सभी घटकों न भागीदारी निभाई, खुशी तो सभी के चेहरे पर साफ साफ झलक रही थी पर वैश्य एकता मंच रुपी बच्चे पर भरोसा कम ही लोगों को हो रहा था लेकिन बच्चा प्रारंभिक समय से ही संस्कारी एवं चमत्कारी लग रहा था। समय के चक्र के हिसाब से बच्चा बड़ा होने लगा शहर में अपनी पहचान बनने लगी तथा विभिन्न उप जातियों में बटे वैश्य समुदाय को एक सूत्र में बांधने तथा एक मंच पर लाने का सफल प्रयास होने लगा परिस्थिति अनुकूल नहीं था पर वितरित भी नहीं था। आशा की किरण साफ साफ दिखाई दे रही थी। समय के साथ राजनीति सुगबुगाहट तथा दलों में उठापटक भी चल रहा था लेकिन उसका असर मंच पर तनिक भी नहीं हो रहा था। वैश्य एकता मंच की अपनी एक अलग दुनिया थी उसी बीच वैश्य एकता रथ निकालने का एक सुंदर एवं सार्थक विचार मन में आया जिसके लिए 29 फरवरी 2004 का वह दिन तथा बिष्टुपुर का माइकल जॉन प्रेक्षागृह का वह स्थान था जहां से वैश्य एकता रथ निकाला गया। समय की मार झेल रहे कुछ वैश्य समाज के लोग इससे जोड़ने की सफल कोशिश की और जुड़ते ही चले गए चाहत तो पूरे सिंहभूम कोल्हान प्रमंडल में रथ भ्रमण का था पर कारणवश पूर्वी सिंहभूम तक ही रथ के माध्यम से वैश्य समाज को जगाने में सफल हो पाए। नयापन का एहसास तो हुआ पर समर्थन सोच से भी अधिक मिला। एक कदम और आगे बढ़ते हुए विचार पूर्वी सिंहभूम स्तर पर प्रथम जिला स्तरीय वैश्य एकता सम्मेलन करने की धुन सवार हुई ।
14 मार्च 2004 को विष्टुपुर के माइकल जॉन प्रेक्षागृह में मंच के संयोजक श्री दीनदयाल प्रसाद तथा केंद्रीय संगठन प्रभारी प्रमुख श्री मोहनलाल अग्रवाल के कुशल नेतृत्व में सफल आयोजन हुआ जितना सोचा नहीं उससे कहीं अधिक सफलता हाथ लगी। वैश्य समाज के लोगों का ध्यान धीरे-धीरे मंच की ओर होने लगा, शहर के कई प्रतिष्ठित लोगों का ध्यान भी मंच की ओर आया फिर क्या था मंच अपने साझा कार्यक्रम को लेकर आगे बढ़ने लगा। मंच का कार्यक्रम चल ही रहा था कि लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका। गरमा गरम हवा का झोंका बहने लगा नहीं चाह कर भी मंच जिस उद्देश्य को लेकर चल रहा था उसमें कुछ रुकावट आ गई इसी बीच राजनीति पार्टियों ने वैश्य समाज की अनदेखी कर कई गलत निर्णय लिए जिसका मंच ने कड़ा विरोध किया था। उदाहरण के तौर पर दिलीप गांधी तथा धीरेंद्र अग्रवाल को लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया जाना प्रमाण था। राजनीति पार्टियों का मानना था कि वैश्य समुदाय हमें छोड़कर कहीं नहीं जा सकता पर मंच की राय स्पष्ट थी वैश्य समाज को किसी राजनीतिक पार्टी का पिथलग्गू बनना मंजूर नहीं। बात कुछ पूर्वी सिंहभूम के क्षेत्रीय संगठन की चली जिसे कम समय में ही पूरा किया जो सुचारू रूप से चल ही रहा था कि 22 मार्च 2004 को रांची स्थित राजेंद्र सभागार में आयोजित राज्य स्तरीय सम्मेलन में कार्यों के आधार पर मंच के संगठन प्रभारी श्री मोहनलाल अग्रवाल तथा संयोजक श्री दीनदयाल प्रसाद जी के अलावा भी कई मंच सदस्य सम्मानित किए गए।
वैश्य एकता मंच एक सामाजिक संगठन है बावजूद इसके ना चाहते हुए भी चुनावी समर में मंच को कुदना ही पड़ा हालांकि यह जल्दबाजी में लिया गया फैसला था फिर भी मंच का प्रयास विफल नहीं गया । शहर की बिगड़ती विधि व्यवस्था की चिंता को लेकर प्रशासनिक अधिकारियों से मिलना तथा उसका निराकरण करवाना भी संस्था अपना हिस्सा मानता था। शहर के युवा व्यवसायी विकास देवूका की दिन दिनदहाड़े हत्या के विरोध में मुख्य मार्ग को घंटों बाधित कर हत्या के विरोध में विशाल जुलूस निकालकर विरोध जताना, 10 जून 2004 को जमशेदपुर शहर को देबुका हत्या के विरोध में शहर बंद को ऐतिहासिक सफलता दिलाना वैश्य एकता मंच के सदस्यों के एकजुटता का प्रमाण था। संस्था तब से लेकर अब तक समाज हित में रचनात्मक तथा संगठनात्मक कार्यों के अंतर्गत कई हितकारी कार्य कर अपने लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसर हो रहा है। आज एक बार धमाकेदार उपस्थिति के साथ पुनः वैश्य एकता मंच की लोकप्रियता समाज और शहर के बीच निरंतर बढ़रही है और संगठन के मजबूत और नेक इरादे के साथ समाज के लोगों के प्रति समर्पित होने का प्रमाण भी देने की कोशिश कर रहा है। मंच का लक्ष्य कोसों दूर तक जाने का है जिसके लिए संगठन के सभी लोग सतत प्रयत्नशील एवं लगन के साथ प्रदेश, जिला एवं मंडल स्तर तक सशक्त कमिटीयां बनाने में युद्ध स्तर पर जुटे हैं और उम्मीद ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि मंच एक ऊंचाइयों को छूने में सफल होगा तथा समाज के बीच अपनी एक पहचान भी बना पाने में सफल हो पाएगा।
जय हिन्द जय वैश्य
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